+91-6393131608



प्राचीन हिन्दू विचारधारा के अनुसार इस अनन्त ब्रह्माण्ड की वास्तविकता के सिद्धान्त में तीन मुलभुत अवस्थाएँ उत्पत्ति (सृष्टी) , अस्तित्व (स्थिति) , विनाश (संहार) हैं जो एक चक्र के भाती कार्य करते हैं | जिनके नाम है :- ब्रह्मा (सृजनकर्ता) , विष्णु (पालनकर्ता) , एवं शिव (संघारकर्ता) इन तीन देवतओं त्रिदेव भी कहा जाता हैं | सृष्टीरूपी चक्र के अंतिम भाग में स्थित होने से शिव से नए चक्र का प्रारम्भ होता है जिस कारण इन्हें सर्वोच्चदेव अर्थात महादेव के रूप में भी जाना जाता है| शिव का प्रतीकात्मक रूप ‘लिंग’ ब्रह्माण्ड के तीनों अवस्थाओं की एकता को प्रदर्शन करता है | (ऊपर चित्र में दर्शित है) लिंग तीन भागो में बाटा होता हैं | पहला भाग नीचे तीन पंखो वाला एक चौकोर आधार होता है जो तीन पौराधिक लोंको को दर्शाता है | यह ब्रह्मा के उत्पत्ति का प्रतिक है | दूसरा भाग आठ दिशाओ के बीच में एक अष्टकोणीय गोल रूप में है , जो विष्णु के स्थान के अस्तित्व का प्रतीक है और तीसरा भाग एक बेलनाकार रूप में है जिसका ऊपरी भाग गोलाकार है जो शिव का स्थान है और यह सृष्टी के समापन का प्रतीक हैं | यह प्रतीक अखंडता की सर्व्वोच्च स्थिति को दर्शाता है | शिवलिंग का सम्पूर्ण रूप स्वयं ब्रह्माण्डीय मण्डल का प्रतीक है| सदाशिव (शाश्वत सत्य) के रूप में शिव को लिंग के रूप में दर्शाया गया है जो “सम्पूर्ण ज्ञान” को सूचित करता है | विध्वंसक रूद्र के रूप में उनकी पत्नी काली है | भयंकर विनासक के रूप में उनकी पत्नी दुर्गा है | हिमालय में रहने वाले एक प्रसन्न देवता के रूप में उनकी पत्नी पार्वती हैं | जो कुछ भी चलायमान है उसके आधार की शांति का केंद्रबिंदु शिव है इसलिए इन्हें ईश्वर कहा जाता है | शिव को ब्रहमाण्ड का नर्तक, ताण्डव नर्तककारी के रूप में भी चित्रित किया गया है | जो विश्व की लय को ब्रहमाण्ड में बनाए रखता है |

** विशेष नोट: शिवलिंग के बारे में दी गई उपर्युक्त सभी जानकारी और इसका वर्णन ‘लिंग पुराण’ में एवं ‘प्रो. राना पी.बी. सिंह’ और ‘डॉ. प्रवीण एस. राना’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘बनारस रीजन’: एक स्प्रितुअलएंड कल्चर गॉइड इंडिका बुक्स वाराणसी, पिलग्रिमेज एंड कोस्मोलोजी सीरीज में वर्णित है |